Hum Sharminda Hain



हम शर्मिन्दा  हैं।

कहने को तो हम दुनिया की एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था हैं , दुनिया में हमारा नाम है। फोर्ब्स  के हिसाब से दुनिया के सबसे अमीर लोगों में 21वें स्थान पर एक भारतीय  मुकेश अम्बानी है , दुनिया के सबसे प्रभावी लीडरों में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का नाम है।  हमारे देश में इस वर्ष मार्च मेें  LOCKDOWN लगा दिया गया था, जिसकी समूचे विश्व में हमारी तारीफ हुई।

न्यूज़ चैनल , समाचार पत्र , TWITTER , सब जग़ह हमारी  तारीफ़ छाई हुई थी। सब कुछ जैसे एक स्वर्ण काल जैसा नज़र आ रहा था तभी अचानक भारत का वह स्वरुप नज़र आया जिसके लिए हम बरसो से बदनाम थे या यूँ कहिये हमारी पहचान  यही थी , मज़दूर , मजबूर भारत।

बुलेट ट्रेन की ओर चल दिए भारतवर्ष ने कभी ये कल्पना भी नहीं की होगी के उसके लाल , लाचार बच्चे , प्रेगनेंट औरतें सबको हज़ार हज़ार किलोमीटर तक की दूरी पे  पैदल जाना पड़ेगा।  Lockdown का वक़्त निकलता रहा , सरकारी योजनाएँ आती रहीं मगर जो नहीं बदला वो था उनके हालात , उनकी भूख।  लाखों की तादाद में मज़दूर  और गरीब वर्ग सड़को पे पैदल चलने लगा।  कुछ लोग अपने घर पहुंच पाए तो कुछ को मृत्यु ने उस भूख और पीड़ा से आज़ादी  दी जिनको हम दुनिया की एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था भारत, मदद करने में लाचार दिखा।  हम शर्मिंदा हैं।

४० दिन पश्चात् lockdown में कुछ रियायतें भी आई , देश की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के नाम पे देश को कुछ ढील दी गयी।  अचरज ये था के हम अपने देश को ४० दिन भी खाना नहीं खिला पाए और इतना मजबूर हो गए की हमें घर से बाहर  निकलना पड़ा। हम लोग मुँह पर मास्क लगाए निकले , वो ग़रीब धूप से अपने नंगे पाँव बचाने में लगा हुआ था।  हमें कोरोना की चिंता है , सरकार को अपनी छवि की , वो ग़रीब मजबूर मज़दूर फिर भी पैदल चले जा रहे हैं अपने घर की ओर , भूख प्यास से लड़ते हुए , कभी ट्रेन से कट गए , कभी ट्रेन के पकड़ने के लिए कोरोना से बचाव न करते हुए हज़ारो की भीड़ में खड़े हैं , पुलिस की लाठी भी खाते हैं तो कुछ पोलिसवाले खाना भी खिला देते हैं।

सरकार की योजनाएँ और tweet  ना उन तक पहुँच पाते हैं ना उन्हें किसी बहस में पड़ना है। वो पैदल चले जा रहे हैं। माताएँ , बहनें , बुज़ुर्ग , बच्चे।  हम उन्हें ४० दिन भी खाना नहीं खिला सके, एक उभरता हुआ देश उनके लिए घोषणाओं के सिवा कुछ ना कर सका।  हम शर्मिंदा हैं।

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